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अमरकंटक: आध्यात्मिकता और प्रकृति का संगम

– श्यामल मंडल

 प्रस्तावना और भौगोलिक परिचय

प्रस्तावना:

भारत एक ऐसा देश है जहाँ की पावन नदियाँ, पर्वत, घाटियाँ और तीर्थस्थल न केवल भूगोल का हिस्सा हैं, बल्कि आस्था, परंपरा और संस्कृति के गहरे प्रतीक भी हैं। इन्हीं में से एक है अमरकंटक, जो मध्यप्रदेश राज्य में स्थित एक अत्यंत पवित्र और दर्शनीय स्थान है। यह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और भूगोल के विद्यार्थियों के लिए भी एक शोध का विषय है।

अमरकंटक को ‘तीर्थराज’ कहा गया है, क्योंकि यह वह स्थान है जहाँ से भारत की तीन प्रमुख नदियाँ—नर्मदा, सोन और जोहिला—जनमती हैं। यह स्थल ना केवल भौगोलिक रूप से विलक्षण है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा से भी ओत-प्रोत है। यहाँ की शांत वादियाँ, घने वन, प्राचीन मंदिर और झरने मन को शांति देते हैं और आत्मा को एक अद्वितीय अनुभूति प्रदान करते हैं।

अमरकंटक का उल्लेख न केवल पुराणों और ग्रंथों में मिलता है, बल्कि यह कई संतों और ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। आदि शंकराचार्य जैसे संतों ने यहाँ साधना की, जिससे यह स्थल भारत की अध्यात्मिक धरोहर का एक अमूल्य रत्न बन गया।

अमरकंटक का भौगोलिक परिचय:

अमरकंटक विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रंखलाओं के संगम पर स्थित एक उच्च भूमि है, जिसे भौगोलिक रूप से प्लेटू (पठार) कहा जा सकता है। इसकी औसत ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 1065 मीटर है। यह मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है और छत्तीसगढ़ की सीमा के पास है।

यह स्थल नर्मदा कुंड के लिए प्रसिद्ध है, जो नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र सतपुड़ा की पर्वत मालाओं और वन्य जीवन से समृद्ध है, और यहाँ की मिट्टी लाल और काली है, जो जलवायु और वनस्पति को विशेष बनाती है।

भौगोलिक रूप से अमरकंटक एक जल विभाजक (Watershed) क्षेत्र है। यह वह स्थान है जहाँ से तीन दिशाओं में नदियाँ बहती हैं:

नर्मदा नदी पश्चिम की ओर बहती है और अरब सागर में मिलती है।

सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है और गंगा नदी में समाहित होती है।

जोहिला नदी उत्तर की ओर बहती है और सोन नदी में मिल जाती है।

इस भौगोलिक विलक्षणता ने अमरकंटक को एक अद्वितीय स्थल बना दिया है, जहाँ से न केवल जलधाराएँ निकलती हैं, बल्कि जीवन और संस्कृति की धाराएँ भी बहती हैं।

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अमरकंटक का इतिहास और पौराणिक महत्त्व

1. पौराणिक मान्यताएँ:

अमरकंटक का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथों, पुराणों, और धार्मिक कथाओं में मिलता है। इसे त्रिदेवों की तपोभूमि और नदियों की जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है।

नर्मदा महात्म्य और स्कंद पुराण में अमरकंटक का उल्लेख विस्तार से मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने यहाँ तप किया था, और नर्मदा नदी उनकी जटाओं से निकली।

नर्मदा को शंकर की पुत्री के रूप में भी पूजा जाता है। यह भारत की एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है — यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

एक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने यहाँ यज्ञ किया और उसी के परिणामस्वरूप नर्मदा का प्राकट्य हुआ।

2. नर्मदा परिक्रमा:

अमरकंटक नर्मदा परिक्रमा का प्रारंभिक बिंदु है। श्रद्धालु यहाँ से नर्मदा की धारा के दोनों किनारों की परिक्रमा करते हुए अरब सागर तक जाते हैं और फिर अमरकंटक लौटते हैं। यह परिक्रमा लगभग 2600 किलोमीटर लंबी होती है और इसमें महीनों लग जाते हैं। इसे भारत की सबसे कठिन और पुण्यदायी यात्राओं में गिना जाता है।

3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

कलचुरी वंश के शासकों ने यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। 10वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान यह क्षेत्र कलचुरी साम्राज्य के अधीन था।

कर्णदेव और युवराजदेव जैसे राजाओं ने नर्मदा मंदिर, कर्ण मंदिर और अन्य स्थापत्य धरोहरों का निर्माण कराया।

यहाँ स्थित मंदिरों की शैली नागर शैली की मिसाल है, जो मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है।

अमरकंटक का नाम मुग़ल और ब्रिटिश कालीन अभिलेखों में भी आता है, जहाँ इसे एक पवित्र, स्वास्थ्यवर्धक और मनोरम स्थल के रूप में वर्णित किया गया है।

4. संतों और तपस्वियों की भूमि:

आदि शंकराचार्य ने अमरकंटक में गहन साधना की थी। उन्होंने नर्मदा के उद्गम स्थल पर ध्यान लगाकर आत्मज्ञान प्राप्त किया।

कई तपस्वियों ने इसे अपनी साधना-स्थली बनाया। आज भी यहाँ अनेक आश्रम और मठ हैं जहाँ सन्यासी साधना करते हैं।

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 नर्मदा नदी का उद्गम और सांस्कृतिक महत्त्व

1. नर्मदा नदी का उद्गम:

नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक के नर्मदा कुंड को माना जाता है। यह कुंड एक पवित्र सरोवर है जहाँ से नर्मदा की एक पतली धारा निकलती है और धीरे-धीरे एक विशाल नदी में परिवर्तित हो जाती है। इस स्थल को श्रद्धालु अत्यंत पवित्र मानते हैं और यहाँ स्नान व पूजा-अर्चना करते हैं।

नर्मदा नदी लगभग 1312 किलोमीटर का सफर तय करती है और मध्य प्रदेश एवं गुजरात से होते हुए अरब सागर में मिलती है। यह भारत की उन कुछ नदियों में से एक है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं।

2. धार्मिक महत्त्व:

नर्मदा को “रेवा” नाम से भी जाना जाता है और यह भारत की पंचनदियों (गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा) में एक विशिष्ट स्थान रखती है।

स्कंद पुराण और नर्मदा महात्म्य में कहा गया है कि:

> “गंगे चे यमुने चैव, गोदावरी सरस्वति।

नर्मदे सिन्धु कावेरि, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।”

यह भी माना जाता है कि नर्मदा दर्शन और स्पर्श मात्र से मोक्ष प्राप्त होता है, जबकि अन्य नदियों में स्नान करने से।

3. नर्मदा की परिक्रमा:

नर्मदा परिक्रमा एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा है जिसमें श्रद्धालु नर्मदा के एक किनारे से यात्रा प्रारंभ करते हैं, समुद्र तक पहुँचते हैं, और फिर दूसरे किनारे से अमरकंटक लौटते हैं।

यह यात्रा आमतौर पर 3-6 महीने में पूर्ण होती है और इसमें हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा शामिल होती है।

इस परिक्रमा में श्रद्धालु गांव-गांव, घाट-घाट रुकते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और अपनी आस्था के साथ प्रकृति का संरक्षण भी सीखते हैं।

4. सांस्कृतिक प्रभाव:

नर्मदा नदी ने मध्य भारत की सभ्यता, संस्कृति, और लोककला को गहराई से प्रभावित किया है।

नर्मदा अंचल की लोकगीतों, कथाओं और रीति-रिवाजों में नर्मदा को माँ, देवी, और जीवनदायिनी शक्ति के रूप में पूजित किया जाता है।

प्रसिद्ध संत भक्त प्रह्लाद, भृगु ऋषि, और अन्य ऋषि-मुनियों ने नर्मदा तट पर तपस्या की थी।

5. प्रमुख धार्मिक स्थल:

नर्मदा उद्गम मंदिर: यहाँ नर्मदा कुंड स्थित है, जो अत्यंत सुंदर और स्थापत्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

कपिलधारा: यह नर्मदा का पहला झरना है, जहाँ ऋषि कपिल ने तपस्या की थी।

दुधधारा: झरने का जल दूध के समान श्वेत प्रतीत होता है, जिससे इसका नाम पड़ा।

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अन्य नदियों का उद्गम: सोन और जोहिला

अमरकंटक केवल नर्मदा का ही नहीं, बल्कि दो और प्रमुख नदियों — सोन नदी और जोहिला नदी — का भी उद्गम स्थल है। इसीलिए अमरकंटक को “तीर्थराज” भी कहा जाता है, जहाँ तीन जीवनदायिनी नदियों की उत्पत्ति होती है। यह विशेषता अमरकंटक को और भी अधिक धार्मिक व भौगोलिक महत्त्व प्रदान करती है।

1. सोन नदी:

उद्गम स्थल:

सोन नदी का उद्गम अमरकंटक के एक दूसरे भाग से होता है, जो नर्मदा कुंड से थोड़ी दूरी पर स्थित है। इसका स्रोत एक छोटी-सी जलधारा के रूप में प्रकट होता है जो बाद में विशाल नदी बनकर बहती है।

प्रमुख विशेषताएँ:

यह नदी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार से होकर बहती है।

इसकी कुल लंबाई लगभग 784 किलोमीटर है।

यह अंततः बिहार के पटना जिले में गंगा नदी में मिल जाती है।

सोन घाटी की उपजाऊ भूमि कृषि के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है।

इस नदी पर कई बाँध और जलविद्युत परियोजनाएँ भी निर्मित हैं, जैसे बंसागर डैम।

सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्त्व:

प्राचीन काल में सोन नदी को शोनभद्र भी कहा गया है।

कई संस्कृत ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

यह नदी भी अमरकंटक की पवित्रता और पर्वतीय प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है।

2. जोहिला नदी:

उद्गम स्थल:

जोहिला नदी का जन्म अमरकंटक पठार के पूर्वी भाग से होता है। यह एक अपेक्षाकृत छोटी नदी है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसका महत्त्व अत्यधिक है।

प्रमुख विशेषताएँ:

यह नदी अमरकंटक के जंगलों और पर्वतीय क्षेत्र से निकलकर अनूपपुर जिले में बहती है।

आगे चलकर यह सोन नदी से मिलती है।

इसका जल स्थानीय लोगों के लिए उपयोगी है तथा यह क्षेत्रीय पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

धार्मिक मान्यता:

स्थानीय परंपराओं में जोहिला को भी पवित्र माना जाता है और कई पूजा-पद्धतियाँ इससे जुड़ी हैं।

कई ग्रामीण त्योहारों में इसकी पूजा होती है।

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अमरकंटक का प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता

अमरकंटक न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक प्राकृतिक धरोहर भी है। यह क्षेत्र घने जंगलों, पहाड़ियों, झरनों और दुर्लभ वन्यजीवों से भरपूर है। इसकी भौगोलिक रचना और विविध पारिस्थितिकी तंत्र ने इसे “मध्य भारत का स्वर्ग” बना दिया है।

1. भौगोलिक संरचना:

अमरकंटक विंध्य, सतपुड़ा और मैकाल पर्वत श्रृंखलाओं के संगम स्थल पर स्थित है।

यह एक पठारी क्षेत्र है जिसकी औसत ऊँचाई 1065 मीटर है।

यहाँ के पर्वतों से कई नदियाँ और जलधाराएँ निकलती हैं, जिससे इसे “जलविभाजक स्थल” भी कहा जाता है।

2. वनस्पति और हरियाली:

अमरकंटक का क्षेत्र साल, सागौन, बाँस, तेंदू, अर्जुन, हर्र-बहेरा, बेल, आमला आदि वृक्षों से आच्छादित है।

यहाँ औषधीय पौधों की भरमार है। भारतीय चिकित्सा पद्धति – आयुर्वेद – में प्रयुक्त अनेक जड़ी-बूटियाँ यहीं पाई जाती हैं।

गुलबकावली, सर्पगंधा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, आदि दुर्लभ वनस्पतियाँ यहाँ की संपदा हैं।

3. जीव-जंतु:

अमरकंटक के जंगलों में चीतल, नीलगाय, भालू, तेंदुआ, सियार, लोमड़ी, आदि वन्य प्राणी पाए जाते हैं।

यह क्षेत्र बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व और कनहा राष्ट्रीय उद्यान के करीब होने के कारण वन्यजीव दृष्टि से संवेदनशील है।

पक्षीप्रेमियों के लिए भी यह क्षेत्र अत्यंत आकर्षक है – यहाँ हॉर्नबिल, तोता, मैना, उल्लू, और विभिन्न प्रकार के जलपक्षी देखे जा सकते हैं।

4. झरने और प्राकृतिक स्थल:

 

कपिलधारा जलप्रपात: यह नर्मदा नदी का पहला झरना है जो लगभग 100 फीट ऊँचाई से गिरता है।

दुधधारा: इसका जल दूध की तरह सफेद दिखाई देता है।

माई की बगिया, श्री यंत्र मंदिर, और सोनमुड़ा जैसे स्थल न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक रूप से अत्यंत रमणीय हैं।

5. जैव विविधता संरक्षण के प्रयास:

अमरकंटक क्षेत्र को जैव विविधता हॉटस्पॉट घोषित किया गया है।

 

यहाँ के जंगलों को संरक्षित करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

 

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय द्वारा स्थानीय जैव विविधता पर शोध भी किया जाता है।

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अमरकंटक का पर्यटन महत्त्व और आर्थिक प्रभाव

अमरकंटक अपनी धार्मिक गरिमा, प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु, प्रकृति प्रेमी, शोधकर्ता और पर्यटक आते हैं, जिससे न केवल इसकी पहचान बढ़ी है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी एक मजबूत आधार बन चुका है।

1. धार्मिक पर्यटन:

नर्मदा उद्गम स्थल, शंकराचार्य मंदिर, कपिलधारा, दूधधारा, नर्मदाकुंड, माई की बगिया जैसे पवित्र स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

नर्मदा जयंती और नर्मदा परिक्रमा जैसे धार्मिक अवसरों पर लाखों लोग अमरकंटक की यात्रा करते हैं।

संतों और साधकों के लिए यह ध्यान और तपस्या का आदर्श स्थान है।

2. प्राकृतिक पर्यटन:

पर्यटक यहाँ झरने, घने वन, हवा से साफ पर्वत, और शांत वातावरण का आनंद लेने आते हैं।

यहाँ के सनसेट प्वाइंट, सोनमुड़ा, और माई की बगिया प्रकृति प्रेमियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।

फोटोग्राफी, ट्रेकिंग और वन्यजीव दर्शन के शौकीनों के लिए अमरकंटक एक उपयुक्त स्थल है।

3. सांस्कृतिक और शैक्षणिक पर्यटन:

अमरकंटक के समीप स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय छात्रों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है।

आदिवासी संस्कृति, जनजातीय कला और हाट-बाज़ार भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।

4. आर्थिक प्रभाव:

पर्यटन उद्योग अमरकंटक के प्रमुख रोजगार स्रोतों में से एक है। यहाँ होटलों, गेस्ट हाउसेस, टैक्सी सेवाओं, स्थानीय गाइड, हस्तशिल्प विक्रेताओं आदि में हजारों लोगों को रोजगार मिलता है।

स्थानीय उत्पाद, जैसे की जड़ी-बूटियाँ, तेंदूपत्ता, शहद, बाँस उत्पाद आदि का बाज़ार बढ़ा है।

धार्मिक मेलों और पर्वों के दौरान व्यापार और सेवाओं में व्यापक वृद्धि होती है।

5. सरकारी प्रयास और योजनाएँ:

मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ के विकास हेतु अनेक योजनाएँ चलाई गई हैं — जैसे पर्यटन सर्किट विकास, सड़क और संचार सुविधा सुधार, और ‘स्वच्छ अमरकंटक’ अभियान।

Eco-Tourism Board द्वारा जंगल सफारी, प्रकृति शिविर और ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहित किया जा रहा

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अमरकंटक का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व

 

अमरकंटक केवल एक प्राकृतिक और धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इसका एक समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी है। यहाँ के मंदिर, पुरावशेष और लोकधाराएँ इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और इतिहास के साक्ष्य हैं।

1. प्राचीन ऐतिहासिक स्थल और मंदिर

अमरकंटक में कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध है शंकराचार्य मंदिर। माना जाता है कि यहाँ गुरु शंकराचार्य ने ध्यान किया था।

नर्मदा कुंड और कपिलधारा भी इस क्षेत्र के प्राचीन धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं।

क्षेत्र में मिलने वाले शिलालेख और मूर्तियाँ यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की कहानी बयान करती हैं।

2. ऐतिहासिक महत्व

अमरकंटक मध्यकालीन भारत में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल था जहाँ राजा-महाराजाओं और साधु-संतों का आगमन होता था।

यह क्षेत्र विभिन्न युगों में राजवंशों और सांस्कृतिक प्रभावों के संगम का केंद्र रहा है।

यहां के प्राकृतिक संसाधनों और नदियों के कारण यह व्यापारिक मार्गों के निकट था

3. सांस्कृतिक परंपराएँ और उत्सव

अमरकंटक में नर्मदा जयंती, माघ मेला, और कपिल मेला जैसे पारंपरिक त्योहार मनाए जाते हैं, जो स्थानीय संस्कृति की जीवंतता को दर्शाते हैं।

आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक परंपराएँ, जैसे नृत्य, गीत और हस्तकला, यहाँ की सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाती हैं।

स्थानीय हस्तशिल्प, जैसे बांस से बनी वस्तुएं, मिट्टी के बर्तन, और पारंपरिक वस्त्र यहां की सांस्कृतिक पहचान हैं।

4. शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थान

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में स्थित है, जो जनजातीय अध्ययन, संस्कृति और भाषा पर अनुसंधान का केंद्र है।

विश्वविद्यालय द्वारा यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

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